Skip to main content

ऐसे बाज नहीं आएगा पाकिस्तान



नापाक पाकिस्तान के जन्मकाल से लेकर आजतक के इतिहास से तो यही जगजाहिर हुआ है कि बार बार मार खाने के बाद भी पाकिस्तान बाज आने वाला नहीं है। इस दहशतगर्द मुल्क के खून में ही भारत और भारतीयता के प्रति नफरत के कीड़े मौजूद हैं। मजहबी कट्टरपन के इन कीड़ों को जितना मारो, ये बढ़ते ही जाएंगे। गत सात दशकों से आघात सह रहे भारत के पास अब एक ही विकल्प रह गया है - पाकिस्तान की तबाही तक जंग करो। नहीं तो फिर इस पड़ोसी मुल्क की दहशतगर्दी को सहन करते रहो।
भारत की सरकार ने पाकिस्तान द्वारा निरंतर हमारे देश में किए जा रहे दहशतगर्द, हिंसक हस्तक्षेप को जड़ से उखाड़ने का निश्चय करते हुए ये चेतावनी दे दी है “भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों, सम्प्रभुता और अखंडता को देखते हुए सख्त व निर्णायक फैसला करने का अधिकार रखता है।” भारत ने सारे संसार के समक्ष ये भी स्पष्ट कर दिया है कि बालाकोट (पाकिस्तान) पर हुई सैन्य कार्रवाई पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर हमला था, ना कि पाकिस्तान पर। परन्तु भारतीय ठिकानों पर पाकिस्तान की वायुसेना द्वारा किया गया हमला भारत पर आक्रमण है।
कुत्ते की दुम कुत्ते को जान से मारे बिना सीधी नहीं हो सकती। जब तक पागल कुत्ता मर नहीं जाता, वह भौंकता रहता है और काटता रहता है। इस प्रसिद्ध लोकोक्ति को पाकिस्तान के संदर्भ में समझना वर्तमान समय की ज़रूरत है। भारत ने इस पागल मुल्क को सीधा करने के लिए वार्ताओं, प्रस्तावों, समझौतों, सैन्य कार्रवाइयों का इस्तेमाल करके देख लिया है। चार बड़े युद्धों में उसकी जबर्दस्त पिटाई करने के बाद, इसे चेतावनियां देकर भी हमने देख लिया। यूएनओ के प्रस्ताव, सिंधु जल संधि, नेहरू-नून समझौता, ताशकंद समझौता, शिमला समझौता और लाहौर घोषणापत्र इत्यादि को ठुकराकर पाकिस्तान ने भारत में अपने सैनिक हस्तक्षेप को जारी रखा।
ज़रा याद करें, उस इतिहास को, जब पृथ्वीराज चौहान ने महमूद गौरी को 16 बार क्षमा कर दिया था। गौरी बार बार पराजित होने के बाद, पृथ्वीराज के आगे गिड़गिड़ा कर क्षमा मांग लेता, और फिर कुछ समय बाद अपने सैन्य बल के साथ हमला कर देता था। परन्तु जब 17वीं बार गौरी की जीत हुई तो उसने पृथ्वीराज को कैद कर के, जंजीरों में बांध कर, काबुल ले जाकर उसकी आंखें निकाल कर उसे तड़पा तड़पा कर मार डाला। हमें उम्मीद है कि ये इतिहास अब नहीं दोहराया जाएगा।
भारत की 130 करोड़ जनता नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर भरोसा करती है कि ये सरकार अपने निर्णायक फैसले के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान की जेहादी मानसिकता को खत्म करके ही दम लेगी। इन दिनों में भी पाकिस्तान की हरकतें यही संकेत दे रही हैं कि यह नापाक मुल्क अपनी मौत के लिए भारत को निमंत्रण दे रहा है। जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शेरों को ललकारता ही है। भारत के शेरों ने इस गीदड़ को चार बार प्राणदान दिया है। अब की बार इसकी तमन्ना पूरी कर ही देनी चाहिए।
पाकिस्तान इस समय आर्थिक दृष्टि से भूखा और कंगाल हो चुका है। भारत ने और विश्व के कई देशों ने चारों ओर से उसका सारा हुक्का पानी इस समय बंद कर दिया है। विश्व जनमत को अपने पक्ष में करने में भारत को अद्भुत सफलता मिल रही है। जिन देशों के टुकड़ों पर पाकिस्तान पल रहा था, उन्हीं ने उसे फटकारना शुरु कर दिया है। इतना होने पर भी पाकिस्तान अपनी दोमुंही नीति और नीच हरकतों से बाज नहीं आ रहा। इस असभ्य और आतंकी मुल्क की असल में यही फितरत है। इसी का खात्मा इस का सही इलाज है।
इस समय पाकिस्तान चौतरफा घिर चुका है। वो भीख और क्षमा मांगने की हालत में पहुंच चुका है। भारत को इस समय चूकना नहीं चाहिए। अच्छा तो ये होगा कि 1947 में की गई सबसे बड़ी भूल (‘भारत विभाजन’) को सुधार कर अखंड भारत की उस कल्पना को साकार करें, जिसके लिए हमारे लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने पिछले 1200 वर्षों मे बलिदान दिए हैं। कम से कम पहले कदम के रूप में इतना तो ज़रुर करें कि 70 साल से पाकिस्तान के कब्जे में कराह रहा हमारा कश्मीर स्वतंत्रता की सांस ले सके। 


नरेंद्र सहगल, 
पत्रकार एवं लेखक

Comments

Popular posts from this blog

कश्मीर : अतीत से आज तक – भाग एक

धर्म-रक्षक आध्यात्मिक कश्मीर नरेन्द्र सहगल पिछले अनेक वर्षों से मजहबी कट्टरपन , भारत विरोध और हिंसक जिहाद के संस्कारों में पल कर बड़ी हुई कश्मीर घाटी की युवा पीढ़ी को भारत की मुख्य राष्ट्रीय धारा में लाना वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती है । इसके लिए कश्मीर के उज्ज्वल अतीत का इतिहास पढ़ाया जाना अतिआवश्यक है । तभी युवा कश्मीरियों को सनातन (वास्तविक) कश्मीरियत का ज्ञान होगा और वे हिंसक जिहाद के अमानवीय मक्कड़जाल से बाहर निकलकर अपने गौरवशाली अतीत से जुड़ सकेंगे । नीलमत पुराण में स्पष्ट वर्णन मिलता है कि भारत का प्राय: सारा क्षेत्र एक भयानक जलप्रलय के परिणाम स्वरूप पानी से भर गया था । कालान्तर में भारत के सभी क्षेत्र पानी निकल जाने के कारण जीवन यापन के योग्य हो गए । परंतु भारत के उत्तर में हिमालय की गोद में एक विशाल क्षेत्र अभी भी जलमग्न ही था । इस अथाह जल ने एक बहुत बड़ी झील का आकार ले लिया । कश्यप मुनि ने बसाया कश्मीर तत्पश्चात् इस झील में ज्वालामुखी फटने जैसी क्रिया हुई । झील के किनारे वाली पर्वतीय चोटियों में अनेक दरारें पड़ने से सारा पानी बाहर निकल गया ।...

कश्मीर की स्वतंत्रता और सुरक्षा में संघ का योगदान

नरेंद्र सहगल भारत की सर्वांग स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं विकास के ध्येय के साथ आगे बढ़ रहे संघ के स्वयंसेवकों ने जम्मू-कश्मीर की रक्षा, भारत में विलय, अनुच्छेद 370 तथा 35/ए   का विरोध, भारतीय सेना की सहायता, कश्मीर से विस्थापित कर दिए गए लाखों हिंदुओं की सम्भाल, अमरनाथ भूमि आंदोलन,तिरंगे झण्डे के लिए बलिदान इत्यादि अनेकों मोर्चों पर स्वयंसेवकों ने मुख्य भूमिका निभाई है | वर्तमान में भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 तथा 35/ए को हटाने, जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन करने, लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश घोषित करने एवं जम्मू और कश्मीर का ‘पूर्ण राज्य’ का दर्जा वापस लेने जैसे साहसिक एवं ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं | इतनी प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति के निर्माण में संघ शाखाओं में दिए जाने वाले राष्ट्रभक्ति के संस्कारों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता | जम्मू-कश्मीर की स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं विकास के सभी मोर्चों पर स्वयंसेवकों ने बलिदान देकर अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया है | अतः वर्तमान में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन को समझने के लिए स्वयंसेवकों द्वारा 72 वर्ष तक किए गए संघर्ष की जानक...

समग्र क्रांति के अग्रदूत योगेश्वर श्रीकृष्ण

                                                                           24 अगस्त जन्माष्टमी पर विशेष नरेन्द्र सहगल अधर्मियों, आतंकवादियों, समाजघातकों, देशद्रोहियों और भ्रष्टाचारियों को समाप्त करने के उद्देश्य से धराधाम पर अवतरित हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्म से लेकर अंत तक अपने निर्धारित उद्देश्य के लिए सक्रिय रहे। वे एक आदर्श क्रांतिकारी थे। कृष्ण के जीवन की समस्त लीलाएं/क्रियाकलाप प्रत्येक मानव के लिए प्रेरणा देने वाले अदभुत प्रसंग हैं। इस संदर्भ में देखें तो श्रीकृष्ण का सारा जीवन ही कर्म क्षेत्र में उतरकर समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिए निरंतर संघर्षरत रहने का अतुलनीय उदाहरण है। आदर्शों/सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारने का दिशा निर्देश है। योगेश्वर कृष्ण की जीवनयात्रा कंस के कारावास की कठोर कोठरी से प्रारम्भ होती है। जेल में यातनाएं सह रहे वासुदेव और देवकी की कोख से जन्म लेकर और...