कट्टरपंथी धर्मान्तरित
कश्मीर
नरेंद्र सहगल
सारे देश में चलती धर्मान्तरण
की खूनी आंधी की तरह ही कश्मीर में भी विदेशों से आए हमलावरों की एक लंबी कतार ने
तलवार के जोर पर हिंदुओं को इस्लाम कबूल करवाया है। इन विदेशी और विधर्मी
आक्रमणकारियों ने कश्मीर के हिंदू राजाओं और प्रजा की उदारता, धार्मिक सहनशीलता,
अतिथिसत्कार इत्यादि मानवीय गुणों का भरपूर फायदा उठाया है। यह मानवता पर जहालत की
विजय का उदाहरण है।
हालांकि कश्मीर की अंतिम हिन्दू
शासक कोटा रानी (सन् 1939) के समय में ही
कश्मीर में अरब देशों के मुस्लिम व्यापारियों और लड़ाकू इस्लामिक झंडाबरदारों का
आना शुरू हो गया था, परंतु कोटा रानी के बाद मुस्लिम सुल्तान शाहमीर के समय
हिंदुओं का जबरन धर्मान्तरण शुरू हो गया। इसी कालखण्ड में हमदान (तुर्किस्तान–फारस)
से मुस्लिम सईदों की बाढ़ कश्मीर आ गई।
महाषड्यंत्रकारी सईदों का
वर्चस्व
सईद अली हमदानी और सईद शाहे
हमदानी इन दो मजहबी नेताओं के साथ हजारों मुस्लिम धर्मप्रचारक भी कश्मीर में आ
धमके (सन् 1372)। इन्हीं सईद सूफी संतों ने मुस्लिम शासकों की मदद से कश्मीर के गांव-गांव
में मस्जिदें, दरगाहें, मदरसे, खानकाह और इसी प्रकार के अन्य इस्लामिक केंद्र खोल दिए। ऊपर
से दिखने वाले इन मानवीय कृत्यों के पीछे वास्तव में कश्मीरी हिंदुओं के बलात् धर्मान्तरण
के कुकृत्य छिपे हैं।
सूफ़ी सईद हमदानी ने कश्मीर
के तत्कालीन सुल्तान कुतुबुद्दीन को धार्मिक फतवा सुनाकर मुस्लिम देशों की वेशभूषा,
राज्य का इस्लामी मॉडल, शासन-प्रणाली में शरियत के कानून लागू करवाए और राज्य के
भवनों पर हरे इस्लामी झंडे लगाने जैसी व्यवस्थाएं लागू करवा दीं। इन सबका विरोध
करने वाले हिंदुओं को सताने और सजाए मौत देने का सिलसिला शुरू हो गया। कश्मीर में धर्मान्तरित
मुसलमानों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी।
इसे समस्त मानवता, भारत,
हिंदू समाज और कश्मीर का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इन्हीं धर्मान्तरित कश्मीरियों
ने विदेशी धर्म-प्रचारकों का धार्मिक स्तर पर ना केवल सहयोग ही किया, बल्कि उनकी
ओर से चलाई जाने वाली धर्मान्तरण की प्रक्रिया में शामिल भी हो गए। अपने ही बाप-दादाओं
द्वारा बनाए गए मठों, मंदिरों, शिक्षा केंद्रों को तोड़कर वहां मस्जिदें खड़ी
करने में इन्हें जरा भी शर्म नहीं आई।
मुस्लिम सुल्तानों ने पढ़े
लिखे कश्मीरी हिंदुओं को अपने राज दरबारों में
वजीर बनाया, ऊंचे पदों पर
रखा और बाद में इन कथित वजीरों को जागीरें देकर राजा शमसुद्दीन और राजा सैफ़ुद्दीन बनाकर इन्हीं से हिंदुओं पर जुल्म की चक्की चलवाई। अन्यथा मुठी भर विदेशी हमलावरों की क्या
हिम्मत थी कि इस धरती पर
अपने पांव जमाने में कामयाब होते।
हिंसक धर्मान्तरण की
क्रूर चक्की
मुस्लिम इतिहासकार हसन ने
अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ कश्मीर’ में इस एकतरफा जबरन धर्मान्तरण की खूनी कहानी का वर्णन इस प्रकार किया है “सुल्तान सिकंदर
बुतशिकन (सन् 1393) ने हिंदुओं को सबसे ज्यादा दबाया। शहरों में
यह घोषणा कर दी गई कि जो हिंदू मुसलमान नहीं बनेगा, वह देश छोड़ दे या मार डाला
जाए। परिणाम स्वरूप अनेक हिंदू परिवार पलायन करके देश के अन्य प्रांतों में चले गए
और कईयों ने इस्लाम कबूल कर लिया। अनेक ब्राह्मणों ने मरना बेहतर
समझा और प्राण दे दिए।
इस तरह सुल्तान ने तीन खिर्बार
(सात क्विंटल) जनेऊ हिंदू धर्म परिवर्तन करने वालों से एकत्रित करके जला डाले हैं...
हिंदुओं के सारे धर्मग्रंथ डल झील में फेंक दिए गए अथवा जला दिए गए।.... अनेक
ग्रंथों को जमीन में दबा दिया गया।.... “इस देश (कश्मीर) में हिंदू राजाओं के समय
में अनेकों मंदिर थे जो संसार के आश्चर्य की तरह थे.... सुल्तान सिकंदर ने ईर्ष्या
और घृणा से भर कर इन मंदिरों को तुड़वा कर मिट्टी में मिला दिया। मंदिरों के मलवे से
ही अनेक मस्जिदें और खनकाहें बनवाईं।”
इस्लाम, मौत अथवा
देशनिकाला
एक अंग्रेज इतिहासकार डॉ
अर्नेस्ट ने अपनी पुस्तक ‘बियोंड दा पीर पंजाल’ में
मुस्लिम सुल्तानों के अत्याचारों को इस तरह लिखा है – “दो-दो हिंदुओं को जीवित ही एक
बोरे में बंद कर झील में फेंक दिया जाता था। हिंदुओं के सामने केवल तीन ही विकल्प
थे। या तो वे मुसलमान बनें, या मौत को स्वीकार करें, या फिर संघर्ष करते हुए
बलिदान दे दें। सिकंदर ने सरकारी आदेश जारी कर दिया – इस्लाम – मौत अथवा देश
निकाला।”
क्रूर और पाश्विक वृत्ति
वाले सुल्तानों ने हिंदुओं के आध्यात्मिक श्रद्धा केंद्रों पर भी अपनी आंखें गाड़
दीं। सईद सूफ़ी संतों ने सुल्तानों को समझाया कि जब तक इन बुतपरस्त काफिरों के
मंदिरों में लगे बुतों को तबाह नहीं किया जाता तब तक धर्मान्तरण का लाभ नहीं होगा।
यही देवस्थल इनकी प्रेरणा के केंद्र है। अतः इन नए मुसलमानों को भारत की मूलधारा
से तोड़ने का एक ही तरीका है, मंदिरों मठों को तोड़ डालो।
सईदों के इन फतवों को
सुल्तानों ने शिरोधार्य करते हुए मानव इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कलाकृतियों को धूलधूसरित
करने का गैर इनसानी कुकृत्य शुरू कर दिया। मुसलमान इतिहासकार हसन के अनुसार सबसे
पहले सुल्तान सिकंदर की दृष्टि मटन (कश्मीर) के विश्व प्रसिद्ध मार्तण्ड सूर्य मंदिर पर पड़ी। इस मंदिर को तोड़ने, जलाने
और पूरी तरह बर्बाद करने में ही लगभग दो वर्ष लग गए।
बर्बाद कर दी गई सनातन
संस्कृति
मार्तण्ड मंदिर के चारों ओर के गांव को इस्लाम कबूल करने के आदेश दे
दिए गए। जो नहीं माने वे परिवारों सहित तलवार की भेंट चढ़ा दिए गए। इसी प्रकार
कश्मीर के प्रसिद्ध बिजविहार स्थान पर एक अति विशाल सुंदर देवस्थल बिजवेश्वर मंदिर
और उसके आसपास के तीन सौ से ज्यादा मंदिर सुल्तान के आदेश से तुड़वा दिए गए। इतिहासकार
मुहम्मद हसन के मुताबिक इस बिजवेश्वर मंदिर की
मूर्तियों और पत्थरों से वहीं एक मस्जिद का निर्माण किया गया और इसी क्षेत्र में कई
खनकाहें बनवाई गई, जिसे आज बिजवेश्वर खनकाह कहते
हैं।
हिंदू उत्पीड़न और बलात् धर्मान्तरण का यह खूनी फ़ाग प्रत्येक
मुस्लिम सुल्तान के समय तेजी से चला। औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल के 49 वर्षों में 14
सूबेदार इसी काम के लिए कश्मीर में भेजें। हिंदुओं के हाथ-पांव काटने, उनकी
संपत्ति हथियाने, उन्हें कारावास में डालने, सजाए मौत देने, अपहरण करने महिलाओं के
साथ बलात्कार करने और हिंदुओं पर जज़िया टैक्स लगाने जैसे जुल्म, एक-साथ युद्ध स्तर
पर शुरू हो गए।
परिणाम स्वरूप हिंदू कश्मीर
की सनातन संस्कृति बर्बाद हो गई। मानव इतिहास की दुर्लभ कलाकृतियां खण्डहरो में
तब्दील हो गईं। भारतीय संस्कृति के इन अनूठे प्रतीकों, स्मृतियों और ध्वंसावशेषों
को देखकर इन्हें तोड़ने और बर्बाद करने वाले जालिम यवन सुल्तानों और उनके जमीर से गिरे
हुए कुकृत्यों का परिचय मिलता है। यह टूटे और बिखरे खण्डहर जहालत और अमानवीय
विचारदर्शन का जीता जागता सबूत हैं।
सनातन हिंदू कश्मीर के धर्मान्तरण और बर्बादी की यह
रक्तरंजित कहानी बहुत लंबी है। सन् 1339 से शुरू हुआ कश्मीर का असली चेहरा
बिगाड़ने वाला यह काला इतिहास 1989 में हुए कश्मीरी हिंदुओं के सामूहिक नरसंहार
एवं पलायन तक जारी रहा।
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शेष कल
नरेन्द्र सहगल
9811802320
पूर्व संघ प्रचारक, वरिष्ठ पत्रकार तथा
लेखक
बहुत अच्छा
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