नरेंद्र सहगल
एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने जन्मकाल
से आज तक नाम, पद, यश, गरिमा, आत्मप्रशंसा और प्रचार से कोसों दूर रहकर राष्ट्र हित में
समाजसेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्रभक्ति के प्रत्येक कार्य में
अग्रणी भूमिका निभाई है. भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़े गए
स्वतंत्रता संग्राम में भी संघ ने आजादी के लिए संघर्षरत तत्कालीन प्रायः सभी
संस्थाओं/दलों द्वारा आयोजित आंदोलनों/सत्याग्रहों और सशस्त्र क्रांति में बढ़चढ़ कर
भाग लिया था. संघ ने अपने संगठन को सदैव पार्श्व भूमिका में रखा. उस समय यही
राष्ट्र के हित में था. परन्तु इसका यह अर्थ लगा लेना मूर्खता ही है कि संघ ने कुछ
नहीं किया. सम्भवतया संघ ही उस समय का एकमात्र ऐसा संगठन था, जिसके निर्माता ने
स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी और हिन्दू संगठन का कार्य इन दोनों
मोर्चों पर सफलता प्राप्त की.
इतिहास के साथ खिलवाड़
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रसिद्धिपराङमुखता और निःस्वार्थ कार्यपद्धति
को संघ की कमजोरी मानकर कतिपय स्वार्थी तत्वों ने स्वतंत्रता संग्राम में संघ के
अग्रणी योगदान पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए. संघ विरोधी इन तत्वों ने अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए
संघ के स्वयंसेवकों की स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी को सिरे से खारिज कर दिया.
चिरपुरातन भारत राष्ट्र के विभाजन के लिए जिम्मेदार इन लोगों ने तो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम, वासुदेव
बलवंत फड़के के किसान आंदोलन, सतगुरु रामसिंह के कूका आंदोलन,
देशव्यापी क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति, हिन्दुस्तान
समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना, गदर पार्टी, अभिनव भारत, सशस्त्र क्रांतिकारी समूहों, हिन्दू महासभा, आर्यसमाज, आजाद
हिन्द फौज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी अनेकों राष्ट्रभक्त संस्थाओं के योगदान
को नकार कर समस्त स्वतंत्रता संग्राम को एक ही दल और एक ही नेता के खाते में डाल
दिया. इन लोगों ने इतिहास के साथ खिलवाड़ करने के साथ उन लाखों स्वतंत्रता
सेनानियों का अपमान किया है, जिन्होंने स्वतंत्रता देवी के चरणों में अपना सर्वस्व
अर्पण कर दिया और बाजा बजा दिया ‘दे दी हमें आजादी हमें बिना
खड़ग बिना ढाल’.
जन्मजात स्वतंत्रता सेनानी
उपरोक्त संदर्भ में सबसे अधिक अन्याय हुआ संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के
साथ. स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी परन्तु अज्ञात योद्धा डॉक्टर हेडगेवार तो
जन्मजात स्वतंत्रता सेनानी थे. बाल्यकाल से लेकर जीवन की अंतिम श्वास तक देश की
स्वतंत्रता के लिए जूझने वाले इस युगपुरुष ने न तो अपनी आत्मकथा लिखी और न ही
समाचार पत्रों में छपने की चाहत पाली. मात्र 8-10 वर्ष की आयु में ही ‘वंदेमातरम’ के लिए संघर्ष, नागपुर के सीताबर्ड़ी किले पर भगवा
ध्वज फहराने की योजना और महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण एवं जन्मदिवस का
बहिष्कार इत्यादि साहसिक गतिविधियों के साथ ही इस स्वतंत्रता सेनानी का संग्राम
प्रारम्भ हो गया था. कलकत्ता में सक्रिय क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में
सक्रियता के बाद 1915-17 में प्रथम विश्व युद्ध के समय
देशव्यापी विपलव की तैयारी, महात्मा गांधी के नेतृत्व में
असहयोग आंदोलन एवं दांडी यात्रा में सक्रिय सहयोग, कांग्रेसी
नेता के नाते अंग्रेजों के विरुद्ध जनसभाओं में धुंआधार भाषण, कांग्रेस के अधिवेशनों में व्यवस्था की जिम्मेदारी और स्वयंसेवक दल का गठन,
पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव लाना इत्यादि प्रसंग उनके स्वतंत्रता
संग्राम में संघर्षरत जीवन का परिचय है.
डॉक्टर हेडगेवार ने दो बार एक-एक वर्ष के घोर कारावास में यातनाएं सहन कीं.
संघ स्थापना के बाद भी उन्होंने स्वयंसेवकों को गांधी जी के आंदोलनों में बढ़चढ़ कर
भाग लेने की स्वीकृति दी. हजारों स्वयंसेवक जेलों में यातनाएं सहते रहे. संघ ने यह
जंग कांग्रेस और महात्मा जी के नेतृत्व में लड़ी. 26 जनवरी 1929 को संघ की सभी शाखाओं में स्वतंत्रता
दिवस मनाया गया. वीर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस एवं डॉक्टर
हेडगेवार सेना में विद्रोह एवं आजाद हिन्द फौज के गठन के पक्षधर थे. सन् 1942
में अंग्रेजों भारत छोड़ो के आंदोलन में संघ के स्वयंसेवकों की मुख्य
भूमिका थी (इन सभी प्रसंगों का सिलसिलेवार ब्यौरा अगली किश्तों में दिया जाएगा).
स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका
संघ के ऊपर स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहने जैसे आरोप वही लोग लगाते हैं जो
स्वयं अंग्रजों की जी हुजूरी करते रहे, जो हाथ में भीख का कटोरा लेकर अंग्रेजों से आजादी की भीख मांगते रहे. इन
लोगों ने सदैव सुभाष, सावरकर, भगत सिंह,
त्रलोक्यनाथ अग्रणी , करतार सिंह सराभा ,
रासबिहारी बोस, श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल, यतीन्द्रनाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आजाद जैसे प्रखर राष्ट्र भक्त
स्वतंत्रता सेनानियों को ‘पथभ्रष्ट देशभक्त’ तक कह डाला. उल्लेखनीय है कि इन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को संघ का पूर्ण
सहयोग मिलता रहा था. अपने संगठन के नाम से ऊपर उठकर स्वयंसेवकों ने अहिंसक सत्याग्रह
एवं सशस्त्र क्रांति दोनों में अग्रणी भूमिका निभाई थी.
ऐतिहासिक सच्चाई तो यह है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद पूरे भारत में तेज गति के साथ हो रहे
हिन्दुत्व के जागरण, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुनर्स्थापन ,
चहुंओर क्रांतिकारी गतिविधियों, संगठित हो रहे
भारतीय समाज और भारतवासियों की स्वातन्त्रय प्राप्ति के लिए उत्कट इच्छा कुचलकर
उसे दिशाभ्रमित करने के लिए 1885 में एक कट्टरपंथी ईसाई
अंग्रेज ए.ओ. ह्यूम ने प्रारम्भिक क्रांग्रेस की स्थापना की थी. (इस कांग्रेस का
स्वतंत्रता संग्राम से कोई लेना देना नहीं था. यह कांग्रेस अंग्रेजों का सुरक्षा
कवच थी) अतः अंग्रेजों की इसी कुटिल चाल को विफल करने, भारतीयता
को विदेशी/विधर्मी षड्यंत्रों से बचाने, स्वतंत्रता आंदोलन
को सनातन राष्ट्रीय आधार प्रदान करने और एक राष्ट्रव्यापी, शक्तिशाली
हिन्दू संगठन (सभी भारतीयों का संगठन) तैयार करने के लिए डॉक्टर हेडगेवार ने 1925
में संघ की स्थापना की थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात् राष्ट्र
की स्वतंत्रता/सुरक्षा के लिए देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों का संगठन.
.......................शेष कल.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा स्तंभकार
है)
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