नरेंद्र सहगल
भारत की सर्वांग स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं विकास के ध्येय के साथ आगे बढ़ रहे
संघ के स्वयंसेवकों ने जम्मू-कश्मीर की रक्षा, भारत में विलय, अनुच्छेद 370 तथा 35/ए
का विरोध, भारतीय सेना की सहायता, कश्मीर
से विस्थापित कर दिए गए लाखों हिंदुओं की सम्भाल,अमरनाथ भूमि आंदोलन,तिरंगे झण्डे के लिए बलिदान इत्यादि
अनेकों मोर्चों पर स्वयंसेवकों ने मुख्य भूमिका निभाई है |
वर्तमान में भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 तथा 35/ए को हटाने, जम्मू कश्मीर
का पुनर्गठन करने, लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश घोषित करने एवं जम्मू और कश्मीर का
‘पूर्ण राज्य’ का दर्जा वापस लेने जैसे साहसिक एवं ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं | इतनी प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति के निर्माण में संघ शाखाओं में दिए जाने वाले
राष्ट्रभक्ति के संस्कारों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता |
जम्मू-कश्मीर की स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं विकास के सभी मोर्चों पर स्वयंसेवकों
ने बलिदान देकर अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया है | अतः वर्तमान में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन को समझने के लिए स्वयंसेवकों द्वारा 72
वर्ष तक किए गए संघर्ष की जानकारी भी देशवासियों को होना आवश्यक है |
स्वयंसेवक बन गए सैनिक
देश विभाजन के समय संघ के तरुण स्वयंसेवकों ने कश्मीर की रक्षा के लिए जो
बलिदान दिए, वे भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखने योग्य हैं | 15 अगस्त, 1947 प्रात: श्रीनगर में पाकिस्तानी तत्वों ने गड़बड़ी करनी शुरू कर दी | सभी सरकारी भवनों पर पाकिस्तान के
हरे झ डे फहरा दिए | संघ के स्वयंसेवकों ने तुरंत संघ कार्यालय पर योजना बनाई | देखते ही देखते पाकिस्तान के झ डे उतार फेंके गए |
संघ के दो प्रमुख प्रचारकों हरीश भनोट और मंगल सेन ने पाकिस्तान की
सैनिक गतिविधियों और संभावित आक्रमण की सूचना प्रमुख कार्यकर्ता बलराज मधोक को दी | महाराजा ने बलराज मधोक को बुलाया सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद महाराजा ने
संघ के 200 स्वयंसेवक उपस्थित करने का निर्देश
दिया |
प्रात: 6 बजे 200 से आधिक स्वयंसेवक वहाँ उपस्थित थे | थोड़ी देर बाद फौजी ट्रक आए और इन तरुणों को लेकर बादामीबाग सैनिक छावनी में पहुँच
गए | वहाँ तुरंत स्वयंसेवकों को राईफल चलानी सिखायी गई | शाम तक ये युवक मोर्चे पर जा पहुंचे। भारतीय फौजों के आने तक 2 दिन तक इन
स्वयंसेवक सैनिकों ने रियासती फ़ौज की मदद की | शेख अब्दुल्ला श्रीनगर पर आक्रमण
होने की जानकारी मिलते ही कश्मीरी जनता को उनके हाल पर छोड़ कर परिवार सहित बंबई
भाग गया था | घाटी को सँभाला और बचाया था पहले संघ के स्वयंसेवकों ने बाद में भारतीय सेना
ने ,भगोड़े शेख अब्दुल्ला ने नहीं |
पाकिस्तान की सेना को खदेड़ते हुए भारतीय सैनिकों की अनेक प्रकार की कठिनाइयों
को स्वयंसेवकों ने अपने परिश्रम तथा बलिदान से दूर कर दिया | जम्मू सम्भाग के कोटली
नामक स्थान पर स्थित एक नदी के किनारे भारतीय सैनिकों के लिए गिराए गए बारूद के
बक्से पाकिस्तानी फ़ौज के नियन्त्रण वाले क्षेत्र में गिर गये | सैनिक अफसरों ने संघ
कार्यालय में जाकर सहायता मांगी | संघ के 8 युवा स्वयंसेवकों
ने इन बक्सों को उठा कर लाने का बीड़ा उठाया | वे जंगली रास्ते से रेंगते हुए वहाँ पहुंचे और बारूद के आठों बक्से उठा कर ले आये
| इस काम में 6 स्वयंसेवक पाकिस्तान की गोलियों से वीरगति को प्राप्त हुए |
विलय करवाने में श्री गुरुजी की भूमिका
महाराजा हरि सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी गोलवलकर
का बहुत सम्मान करते थे | गाँधी जी एवं सरदार पटेल भी इस
मित्रता को जानते थे | अत: उन्होंने श्री गुरु जी से इस समस्या के समाधान हेतु निवेदन किया | श्री गुरुजी सरदार पटेल की व्यवस्था के अंतर्गत सरकारी विमान से पहले दिल्ली
पहुंचे | उन्होंने सरदार पटेल से संक्षिप्त बातचीत की और उसी दिन 17 अक्टूबर,1947 को वे
श्रीनगर नगर पहुंच गए | उनके साथ संघ के पंजाब प्रांत
प्रचारक माधवराव मूले तथा उत्तर प्रदेश के प्रांत संघचालक बैरिस्टर नरेंद्रजीत
सिंह भी थे |
ये सब लोग श्रीनगर में बैरिस्टर साहब की ससुराल में ठहरे तथा 18 अक्टूबर,1947
को महाराजा से भेंट हुई | इस भेंट के समय युवराज कर्णसिंह,
रियासत के दीवान मेहरचंद महाजन एवं महाराज के निजी सहायक कैप्टन दीवान सिंह भी
मौजूद थे |
बहुत ही प्रेमपूर्वक माहौल में हुए इस वार्तालाप में श्री गुरुजी ने महाराजा को
सरदार पटेल के हवाले से आश्वस्त कराते हुए कहा, “आप हिन्दू राजा हैं”| पाकिस्तान में विलय करने से आपकी हिन्दू प्रजा को भीषण संकटों से संघर्ष करना
पड़ेगा | यह ठीक है कि अभी हिंदुस्तान और कश्मीर के रास्ते में रेल लाईन नहीं है,
परन्तु सब ठीक हो जाएगा | आपका और ‘जम्मू कश्मीर’ रियासत का
भला इसी में है कि आप भारत में विलय करें |
श्री गुरु जी वापस दिल्ली आये और सरदार पटेल को सारी जानकारी दे कर नागपुर लौट
गए । तत्पश्चात् महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर के भारत में विलय
पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए । 27 अक्टूबर को भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन
ने विलय स्वीकार करते हुए जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल कर लिया | परन्तु देश के दुर्भाग्य से भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर नेहरू ने जम्मू
कश्मीर के महाराजा हरी सिंह को रियासत की सत्ता शेख अब्दुल्ला को सौंपने का आदेश
दे दिया| महाराजा को जम्मू कश्मीर छोड़ देने की हिदायत दे दी | यहीं से जम्मू कश्मीर की समस्या का श्री गणेश हो गया| पाकिस्तान की सेना श्रीनगर तक आ पहुंची।
जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय होते ही भारतीय सेना ने कश्मीर की ओर कूच कर दिया।
स्वयंसेवकों ने तैयार की हवाई
पट्टियां
भारतीय वायु सेना को जम्मू कश्मीर में उतारने के लिए
हवाई पट्टियाँतो दयनीय हालत में थीं। उन्हें शीघ्र ठीक करने की
जरूरत थी। अतः फौजी अफसरों और नागरिक अधिकारियों की निगाह संघ के स्वयंसेवकों पर
गई। संघ के अधिकारी से बातचीत की गई। सब तैयार थे। आदेश मिलते ही हजारों
स्वयंसेवकों ने कमर कस ली। श्रीनगर, पुंछ और जम्मू, इन तीन स्थानों पर हवाई पट्टियाँ बनाने और सँवारने का काम शुरू हो गया। यह काम
दिन को तो चला ही था, परंतु समय की कमी और जरूरत की वजह से रात को भी चलता रहा। जमीन साफ करने का
सामान अर्थात् गेंती-फावड़ा-खुर्पे इत्यादि की व्यवस्था भी संघ ने ही की।'देश को सबकुछ देंगे, बदले में कुछ नहीं लेंगे' के सिद्धांत पर चलनेवाले स्वयंसेवकों ने न रात देखी और न दिन, अपने कड़े परिश्रम से निश्चित अवधि के भीतर तीनों हवाई पट्टियों को हवाई
जहाजों के उतरने योग्य बना दिया।
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी व स्वयंसेवकों का बलिदान
पंडित जवाहरलाल नेहरू के खास दोस्त मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मुहम्मद अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के वजीरे आला (मुख्यमंत्री)
बनते ही अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता का प्रदर्शन करना प्रारंभ कर दिया | कश्मीर के अल्पसंख्यक हिंदुओं और जम्मू सम्भाग के हिंदुओं पर तरह-तरह के
गैरकानूनी जुर्म ढाए जाने लगे । मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के लाल झण्डे को रियासत का झण्डा
बना दिया गया । हिंदुओं को उनके धार्मिक एवं मौलिक अधिकारों से भी वंचित किया जाने
लगा।
शेख अब्दुल्ला के द्वारा की जाने वाली एकतरफा तानाशाही के विरुद्ध जम्मू के
लोगों ने एक प्रचण्ड जनांन्दोलन करने का फैसला किया । संघ के प्रांत संघचालक पंडित
प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद नामक एक संगठन बनाया । इस संगठन में
शेख के तानाशाही शासन एवं उसकी हिन्दू विरोधी राजनीतिक कार्य-प्रणाली को समाप्त
करने के उद्देश्य से धरने, प्रदर्शनों, सत्याग्रहों एवं मुस्लिम कॉन्फ्रैंस के झण्डे
( रियासती झण्डे ) को उतारकर तिरंगा लहराने जैसे कार्यक्रमों की झड़ी लगा दी । यह आंदोलन जम्मू-कश्मीर
सहित पूरे देश में फैल गया।
संघ ने अपनी पूरी शक्ति इस आंदोलन को सफल बनाने में झौंक दी ।उस समय संघ के 27 प्रचारकों को भी
इस आंदोलन की बागडोर संभालने के आदेश दे दिए गए । सरकारी भवनों पर तिरंगा लहराते
हुए 17 स्वयंसेवक पुलिस की गोलियों से वीरगति को प्राप्त हुए। हजारों कार्यकर्ताओं
को जेलों में बंद कर दिया गया । बलिदान देने, जख्मी होने और अमानवीय यातनाएं सहते
हुए भी आम जनता की भागीदारी बढ़ती गई । इतने पर भी भारत के प्रधानमंत्री पंडित
नेहरू का दिल नहीं पसीजा |
इन परिस्थितियों में जनसंघ के अध्यक्ष डॉ
श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने प्रजापरिषद के आंदोलन का समर्थन कर दिया। एक देश में दो
प्रधान, दो निशान, और दो विधान नहीं चलेंगें के उद्घोष के साथ बिना परमिट लिए
जम्मू कश्मीर में प्रवेश किया । कश्मीर मिलीशिया (पुलिस) ने शेख के आदेशानुसार
डॉक्टर साहब को गिरफ्तार करके श्रीनगर की तन्हाई जेल में डाल दिया । वहां रहस्यमयी
परिस्थितियों में डॉक्टर मुखर्जी की मृत्यु हो गई ।
सारे देश में हाहाकार मच गया नेहरू जी भी घबरा गए । उन्होंने प्रजापरिषद की
अधिकांश मांगें मान ली । परमिट सिस्टम समाप्त हो गया । सदर-ए-रियासत और वजीरे आला के
स्थान पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री नाम स्वीकार कर लिए गए । शेख अब्दुल्लाह को
गिरफ्तार करके जेल में भेज दिया गया । परंतु नेहरु जी ने अनुच्छेद 370 को नहीं
हटाया। अब केंद्र में स्थापित भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने डॉक्टर श्यामप्रसाद
के एजेंडे को सफल कर दिया है। इसे संघ के स्वयंसेवकों द्वारा दिए
गए बलिदानों का फल कहने में कोई भी अतिश्योक्ति नहीं होगी ।
संघ के स्वयंसेवकों ने गत 72 वर्षों में जम्मू कश्मीर की स्वतंत्रता,सुरक्षा
और सम्मान के लिए निरंतर संघर्ष किया है । पाकिस्तान द्वारा किए गए आक्रमणों
के समय स्वयंसेवकों ने समाज का मनोबल बढ़ाने के साथ प्रत्यक्ष सीमा पर जाकर
सैनिकों की प्रत्येक प्रकार की सहायता भी की है । आतंकवादियों का सामना करने के
लिए स्थापित की गई सुरक्षा समितियों में संघ का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1989 में
कश्मीर घाटी से निकाल दिए गए कश्मीरी हिंदुओं के देखभाल की जिम्मेदारी निभाई है।
एक और महत्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न करके संघ ने वर्तमान में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन
में अपनी पार्श्व भूमिका निभाई है । आठ वर्ष पूर्व स्वयंसेवकों द्वारा गठित जम्मू
कश्मीर स्टडी सर्कल ने कश्मीर समस्या की जड़ोंका गहराई से अध्ययन करके अनेक
ऐतिहासिक तथ्य सरकार और जनता के समक्ष प्रस्तुत किए हैं। निश्चित रूप से इस शोध
कार्य का परिणाम सामने आया है। इसमें कोई भी संशय नहीं हो सकता कि वर्तमान सरकार
की दृढ़ इच्छाशक्ति, ठोस निर्णय करने की परिपक्व क्षमता से संयमित दूरदर्शिता और
सूझबूझ के परिणाम स्वरूप एक ही झटके में इतना बड़ा परिवर्तन संभव हो सका । सरदार पटेल, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, श्री गुरुजी, डॉ.आंबेडकर धारा 370 के विरोधी थे, वे इसे संविधान में शामिल करने के खिलाफ थे। उनका स्वप्न अब साकार हुआ है। और
उनका स्वप्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने ही पूरा किया है।
नरेंद्र
सहगल
(पूर्व संघ प्रचारक, लेखक और
पत्रकार)
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