नरेंद्र सहगल
संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के देहावसान के बाद संघ के सभी अधिकारी एवं कार्यकर्ता अपने नये सरसंघचालक श्री
गुरुजी के नेतृत्व में डॉक्टर जी द्वारा निर्धारित कार्य-विस्तार के लक्ष्य को
पूरा करने हेतु परिश्रमपूर्वक जुट गए. श्रीगुरुजी एवं
सहयोगी संघ अधिकारियों के सामूहिक प्रयास के फलस्वरूप अनेक युवा स्वयंसेवक अपने
घर-परिवार छोड़कर देश के प्रायः सभी प्रांतों में प्रचारक के रूप में फैल गए. पहले
जो संघ शिक्षा वर्ग केवल नागपुर में सम्पन्न होते थे, अब धीरे-धीरे देश के प्रत्येक प्रांत में
आयोजित होने लगे. शाखाओं एवं स्वयंसेवकों की संख्या तेज गति से बढ़ने लगी. श्रीगुरुजी
के सतत् प्रवास और भाषणों/ वक्तव्यों के फलस्वरूप सारे देश में युवा स्वयंसेवकों
(स्वतंत्रता सेनानियों) की टुकड़ियां संघ की शाखाओं में नजर आने लगीं.
इस प्रचंड हिन्दू शक्ति का दृश्य ब्रिटिश साम्राज्यवादियों, उनके भारतीय
समर्थकों और सरकारी गुप्तचर विभाग की आंखों में खटकने लगा. गुप्तचर विभाग की
प्रारम्भिक रिपोर्टों के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने 5 अगस्त 1940 को एक
अध्यादेश के द्वारा भारत सुरक्षा कानून 56 व 58 के अंतर्गत किसी भी गैर सरकारी संगठन द्वारा सैनिक वर्दी
पहनने और सैनिक परेड करने पर कानूनी प्रतिबंध लगा दिया गया. इस आदेश के बाद जब
सरकार ने संघ की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए गुप्तचर विभाग को सक्रिय किया तो
देशभर से रिपोर्टें आने लगीं. इन रिपोर्टों में कहा गया कि संघ का वास्तविक
उद्देश्य तो अंग्रेजों को भारत से खदेड़कर देश को स्वतंत्र करवाना है. अपने इस
निष्कर्ष के आधार पर गुप्तचर विभाग ने श्रीगुरुजी, बाबा साहब आप्टे और अन्य संघ अधिकारियों के द्वारा
विभिन्न स्थानों पर समय-समय पर दिए गए भाषणों के कुछ अंश भी एकत्र कर लिए.
राष्ट्रवादी इतिहासकार देवेन्द्र स्वरूप ने राष्ट्रीय अभिलेखागार में
सुरक्षित रखे गए गुप्तचर विभाग के दस्तावेजों की एक मोटी फाइल का पूर्ण अध्ययन
करने के बाद लिखा है ‘गुप्तचर विभाग की इन रिपोर्टों के अनुसार संघ का कार्य तो बड़ी तेजी से पूरे
देश में फैल रहा है. 11 स्थानों पर उसके अधिकारी शिक्षण शिविर लग रहे हैं. सैकड़ों
लोग अपने परिवार छोड़कर दूसरे प्रांतों में संघ की शाखाएं खोलने के लिए जा रहे हैं.
संघ के नेता एम.एस. गोलवलकर शहरों के साथ-साथ देहाती क्षेत्रों में भी संघ की
शाखाएं खोलने का जोरदार आह्वान कर रहे हैं. वे अस्पृश्यता को मिटाने और हिन्दू
समाज के सब वर्गों को एकता के सूत्र में बांधने की बात कर रहे हैं.
इसी तरह एक अन्य
केन्द्रीय गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट में संघ के प्रभाव-विस्तार एवं उसके ब्रिटिश
विरोधी इरादों का और भी भयावह चित्र प्रस्तुत किया गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया
है कि ‘संघ बड़ी
तेज गति से अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर रहा है. अब उसकी शाखाओं का जाल देशी
रियासतों सहित पूरे भारत में फैल चुका है. -- सरकारी सेवाओं यहां तक कि सेना में
भी संघ की घुसपैठ हो चुकी है -- यह संस्था बहुत साम्प्रदायिक एवं ब्रिटिश विरोधी
है और इसका स्वर उत्तरोत्तर लड़ाकू होता जा रहा है - एम.एस. गोलवलकर बड़ी गति से
स्वयंसेवकों का सुदृढ़ संगठन खड़ा कर रहे हैं, जो गोपनीयता बरतते हुए आदेशों का पालन करें और
जब आवश्यकता हो तब नेता के आदेशानुसार किसी भी प्रकार के काम में कूद पड़ें -
गोलवलकर बहुत ही सावधान, चालाक और इससे कहीं अधिक क्षमतावान है. अंत में इस रिपोर्ट
में संघ की गतिविधियों पर गड़ी नजर रखने, उसके दैनिक कार्यक्रमों के सैनिक अंश पर कड़ाई से रोक लगाने
एवं शिक्षा वर्ग न लगाने का परामर्श दिया गया है’’.
राष्ट्रीय अभिलेखागार की फाईलों में संघ
राष्ट्रीय अभिलेखागार में गुप्तचर विभाग की यह रिपोर्ट सुरक्षित रखी हुई
है. इस रिपोर्ट में संघ के अनेक कार्यकर्ताओं के नाम भी मिलते हैं, जो 1942 के
आंदोलन में भागीदारी करने के कारण विभिन्न स्थानों पर हिरासत में लिए गए और जेलों
में सजा भुगतते रहे. इन रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि विदर्भ के चिमूर आष्ठी
नाम के स्थान पर तो संघ के कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्र सरकार की स्थापना भी कर ली
थी. इन स्वयंसेवकों ने अंग्रेजों की पुलिस द्वारा किए गए कई प्रकार के अमानुषिक
अत्याचारों का सामना किया - अपनी सरकार स्थापित करने के बाद सरकारी आदेशों से हुए
लाठीचार्ज, गोली वर्षा
में एक दर्जन से ज्यादा स्वयंसेवक शहीद हुए थे. नागपुर के निकट रामटेक के संघ के
नगर कार्यवाह रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहब देशपांडे को 1942 के ‘अंग्रेजों भारत
छोड़ो आंदोलन’ में भाग
लेने पर मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी. परन्तु बाद में उन्हें सजा से मुक्त कर
दिया गया. यह वही सज्जन हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ‘वनवासी कल्याण
आश्रम’ की
स्थापना की.
महात्मा गांधी की अगुवाई में चलने वाले इस स्वतंत्रता आंदोलन में भारत के
प्रत्येक नगर में संघ के स्वयंसेवक अंग्रेज सरकार और उसकी पुलिस से टक्कर ले रहे
थे. इन स्वयंसेवकों ने अनेक तहसीलों और जिला परिषदों के भवनों पर तिरंगा झंडा
फहराकर सत्याग्रह किया. कई स्थानों पर तो अंग्रेजों के झंडे ‘यूनियन जैक’ को उतारकर जलाया जाता रहा.
और उसके स्थान पर तिरंगा झंडा फहराया गया. उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में मवाना
तहसील पर तिरंगा झंडा फहराते समय पुलिस की गोलियों से कई स्वयंसेवक जख्मी हो गए.
इस समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम का डंका लगभग पूरे देश में बज रहा था.
स्वयंसेवकों की टोलियां अपने संघ की वर्दी न पहनकर साधारण नागरिक की तरह
महात्मा गांधी की जय और ब्रिटिश सरकार मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए निकलती थी. तब
पहले से निर्धारित स्थान पर पहुंचकर कानून का उल्लंघन करके अपनी गिरफ्तारियां देती
थीं. पुलिस के साथ भिड़ंत होने पर भी संघ के स्वयंसेवकों ने संयम बनाए रखा, क्योंकि महात्मा
गांधी जी की ऐसी ही आज्ञा थी.
आन्दोलनकारियो की सुरक्षा एवं सहायता
केवल अंग्रेज सरकार के गुप्तचर ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी
पार्टी के निर्देशानुसार देशभक्तों को गिरफ्तार करवा रहे थे. ऐसे में समाजवादी
नेता जयप्रकाश नारायण और कांग्रेस के नेता अरुणा आसफ अली को दिल्ली के संघचालक
हंसराज गुप्ता ने अपने घर में शरण दी और
वे वहीं से आंदोलन की गतिविधियों का संचालन करते रहे. इसी तरह प्रसिद्ध समाजवादी
नेता अच्युत पटवर्धन और साने गुरुजी ने पूना के संघचालक भाऊसाहब देशमुख के घर पर
अपनी गतिविधियों का गुप्त कार्यालय स्थापित किया. प्रसिद्ध क्रांतिकारी नाना पाटिल
को जिला सतगरा के संघचालक सातवलेकर जी ने अपने घर पर आश्रय दिया था.
गुप्तचर विभाग की रिपोर्टों में यह भी कहा गया था कि 20 सितम्बर 1943 को
नागपुर में हुई संघ की गुप्त बैठक में जापान की सहायता से आजाद हिंद फौज के भारत
की ओर होने वाले कूच के समय संघ की सम्भावित योजना पर भी विचार हुआ था. संघ के
स्वयंसेवकों ने जब आंदोलन में भाग लेकर जेलों में जाना प्रारम्भ कर दिया तो
सरसंघचालक श्री गुरुजी ने स्पष्ट कहा ‘‘जो स्वयंसेवक कारावास में नहीं जा सकते, वे बाहर रहकर इस
आंदोलन में भाग लेने वाले बंधुओं और उनके परिवारों की सब प्रकार से सहायता करें’’. अतः संघ के कार्यकर्ताओं ने आंदोलन का संचालन कर रहे भूमिगत
नेताओं को न केवल अपने घरों में सुरक्षित शरण दी, अपितु उनके परिवारों की भी हर
तरह से देखभाल करते रहे.
1942 के आंदोलन पर संघ की भूमिका बहुत स्पष्ट थी, सरसंघचालक श्री
गुरुजी के अनुसार ‘‘हम अपनी प्रतिज्ञा में शपथ लेते हुए कहते हैं कि हिन्दू
राष्ट्र को स्वतंत्र करने के लिए मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूं, इसलिए
देश की स्वतंत्रता के लिए चल रहे इस आंदोलन में भाग लेने की स्वयंसेवकों की तीव्र
इच्छा का होना स्वाभाविक है -- परन्तु जिस कांग्रेस ने यह आंदोलन चलाने का निश्चिय
किया है, उन्होंने
यह नहीं सोचा कि देश में और भी संस्थाएं हैं जो भारत को अंग्रेजों के पाश से मुक्त
कराना चाहती हैं. इन सबके साथ मिलकर एक संयुक्त रणनीति बनाई जा सकती थी. तो भी संघ
के स्वयंसेवक पहले की ही तरह इस आंदोलन में भी निजी हैसियत से, कांग्रेस के
नेतृत्व में भाग लेते रहेंगे’’. वास्तविकता तो यह है कि इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
ही एक ऐसा संगठन था, जिसके पास निस्वार्थ भाव से अपने देश और समाज के लिए काम करने
वाले युवकों की शक्ति थी. इसीलिए संघ के स्वयंसेवक अपने
प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्वयंस्फूर्ति से 1942 के आंदोलन में
कूद पड़े.
नेतृत्व विहीन एवं दिशाहीन नेतृत्व
अभी तक के अनुभवों के आधार पर महात्मा गांधी जी ने तो यही समझा था कि सरकार
की ओर से वार्ता का निमंत्रण पत्र मिलेगा और पहले की तरह ही इस आंदोलन को वापस लेने
का बहाना मिल जाएगा. परन्तु इस बार ब्रिटिश सरकार ने फुर्ती दिखाते हुए दो-चार दिन
में ही कांग्रेस कार्यकारिणी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर के जेलों में बंद कर
दिया. ब्रिटिश सरकार ने सतर्कता बरतते हुए उन सभी नेताओं को आपस में विचार विनिमय
का मौका ही नहीं दिया. और कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर के आंदोलनकारियों को
दिशाहीन और नेतृत्वविहीन कर दिया.
इतिहासकार डॉ. सतीश मित्तल के अनुसार ‘‘इस आंदोलन में विभिन्न पार्टियों की भूमिका एक
जैसी नहीं रही. इसमें सर्वाधिक देशद्रोहितापूर्ण भूमिका भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
की रही. इस पार्टी ने आंदोलन के विरुद्ध और ब्रिटिश सरकार के समर्थन में काम किया.
वास्तव में कम्युनिस्ट पार्टी ने ब्रिटिश सरकार की एजेंट बनकर देशभक्तों की
गुप्तचरी का काम किया. कम्युस्टि पार्टी के पोलित ब्यूरो तथा भारत सरकार के गृह
विभाग के सचिव में समझौता हुआ, जिसमें कम्युनिस्ट नेता पीसी जोशी को ब्रिटिश सरकार
की सहायता के लिए नियुक्त कर दिया गया’’.
यह एक निर्विवाद ऐतिहासिक सत्य है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1942 का भारत
छोड़ो आंदोलन प्रारम्भ करने से पहले अन्य किसी राजनीतिक दल, सामाजिक/धार्मिक संस्था के किसी भी नेता के साथ
कोई चर्चा नहीं की. 08 अगस्त 1942 को मुंबई में हुई कांग्रेस की अखिल भारतीय समिति ने
सर्वसम्मति से महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आंदोलन को हरी झंडी
दिखा दी.
इस देशव्यापी भारत छोड़ो आंदोलन की विस्तृत रूप रेखा का कोई खाका तैयार नहीं
किया गया. कौन-कौन नेता जेल में जाएंगे, कौन पीछे रहकर सत्याग्रह का संचालन करेंगे, किन स्थानों पर
आंदोलन पहले और बाद में होगा, तहसील और जिला स्तर पर सत्याग्रह करने की योजना को
सफलतापूर्वक साकार करने के लिए प्रचार के कौन से साधन अपनाए जाएंगे. जनसभाओं, प्रदर्शनों, धरनों इत्यादि
की व्यवस्था के लिए किसी भी प्रकार का संगठनात्मक ढांचा तैयार नहीं किया गया. फलस्वरूप
आंदोलन बिखरा-बिखरा सा रहा.
अंग्रेजो ने भारत क्यों छोड़ा ?
संघ के पांचवे सरसंघचालक श्रीमान के.सी. सुदर्शन ने राष्ट्रधर्म मासिक के
नवम्बर 2009 के अंक में अपने लेख में लिखा था ‘‘जिस ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली के काल में भारत को
स्वतंत्रता मिली, वह 1965 में एक निजी दौरे पर कलकत्ता आए थे और उस समय के कार्यकारी राज्यपाल तथा
कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश सी.डी. चक्रवर्ती के साथ राजभवन में ठहरे
थे. बातचीत के दौरान चक्रवर्ती जी ने सहज भाव से एटली से पूछा कि - 1942 का
आंदोलन तो असफल हो चुका था और द्वितीय महायुद्ध में भी आप विजयी रहे फिर आपने भारत
क्यों छोड़ा? तब एटली
ने कहा था कि हमने 1942 के आंदोलन के कारण भारत नहीं छोड़ा, हमने भारत छोड़ा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कारण, नेताजी अपनी फौज
के साथ बढ़ते-बढ़ते इम्फाल तक आ चुके थे और उसके तुरन्त बाद नौसेना और वायु सेना में
विद्रोह हो गया’’.
1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन’ की डांवांडोल
हालत के बाद सुभाष चंद्र बोस जापान की सहायता से आजाद हिंद फौज द्वारा ब्रिटिश
साम्राज्य पर एक सशक्त प्रहार करने की तैयारी में जुट गए, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और वीर सावरकर
हिन्दू महासभा का विस्तार करने में जुटे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक
श्री गोलवलकर संघ के आद्यसरसंघचालक डॉक्टर हेडगेवार द्वारा निर्धारित लक्ष्य ‘अखंड भारत की
पूर्ण स्वतंत्रता’ के लिए संघ की शाखाओं के विस्तार और युवा स्वयंसेवकों को
सच्चे एवं कर्मठ स्वतंत्रता सेनानी बनाने के कार्य में अहोरात्र व्यस्त हो गए.
......................शेष कल.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा स्तंभकार है )
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