Skip to main content

अज्ञात स्वतंत्रता सेनानी : डॉक्टर हेडगेवार – 3



नरेंद्र सहगल

भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के क्रूर पंजे से मुक्त करवाने के लिए समस्त भारत में एक संगठित सशस्त्र क्रांति का आधार तैयार करने हेतु केशवराव हेडगेवार को तत्कालीन राष्ट्रवादी नेताओं विशेषतया लोकमान्य तिलक ने कलकत्ता भेजा था. तिलक की सांस्कृतिक राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित केशवराव नागपुर में सक्रिय रहते हुए बंगाल के क्रांतिकारी दल ‘अनुशीलन समिति’ से भी जुड़ गए थे

1910 में केशवराव ने कलकत्ता के लिए प्रस्थान किया. इनके पास डॉक्टर मुंजे द्वारा दिए गए परिचय पत्र के अलावा और कुछ भी नहीं था. डॉक्टर मुंजे के प्रभाव के कारण केशवराव को कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया. इस कॉलेज के प्रबंधक तथा प्राध्यापक भी राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत थे. केशवराव के कालकत्ता में आने का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र क्रांति का प्रशिक्षण लेना और पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 जैसी महाक्रांति का आगाज करना था.

अद्भुत  लोक संग्रही और संगठक

केशवराव हेडगेवार की एक खास पहचान यह थी कि वह संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मित्र बनाकर उसे अनुशीलन समिति के कार्य में लगा लेते थे. नेशनल मेडिकल कॉलेज में देश के प्रायः प्रत्येक प्रांत के विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे. केशवराव ने उन सबके माध्यम से शीघ्र ही देशभर में भविष्य के महाविप्लव के लिए युवाओं को तैयार करने की तत्परता दिखाई और सफलता भी प्राप्त की. डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता डॉक्टर आशुतोष मुखर्जीमोतीलाल घोषविपिनचंद्र पाल तथा रासबिहारी बोस जैसे राष्ट्रीय/हिन्दुत्वनिष्ठा नेताओं के साथ भी केशवराव ने घनिष्ठ संपर्क स्थापित कर लिया.

अपने जुझारू स्वभावनिरंतर परिश्रम तथा लोकसंग्रही वृत्ति होने के कारण केशवराव शीघ्र ही अन्य प्रांतों में चल रही क्रांतिकारी गतिविधियों की मुख्य कड़ी बन गए. बंगाल के कई स्थानों पर हथियारों की गुप्त फैक्ट्रियां सफलतापूर्वक चल रही थीं. यहीं से देशभर के क्रांतिकारियों को हथियारों की सप्लाई होती थी. केशवराव हेडगेवार ने इस कार्य को भी बहुत सतर्कता के साथ निभाया. विशेषतया मध्य प्रांत में क्रांतिकारियों तक हथियारों को पहुंचाना केशवराव की मेहनत का ही प्रतिफल था. मध्य प्रांत के तत्कालीन सरकारी दस्तावेजों में भी स्वीकार किया गया है कि हेडगेवार ने नागपुर और बंगाल के क्रांतिकारियों के बीच तालमेल बनाने में एक बड़ी सफलता प्राप्त कर ली. परिणामस्वरूप क्रांतिकारी देशभक्तों की एक लम्बी श्रृंखला तैयार हो गई.

सूझबूझ और पैनी दृष्टि

सरकारी गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने केशवराव हेडगेवार को एक सफल क्रांतिकारी बताते हुए इनके खिलाफ लम्बी-लम्बी रपटें सरकार के पास भेजीं, परन्तु इस अति सतर्क युवा राष्ट्रभक्त के क्रियाकलापों के ठोस सबूत जुटा पाने में गुप्तचर विभाग को कभी सफलता नहीं मिली. काम हो जाने के बाद ही काम का पता चलता था. लाख सर पटकने के बाद भी क्रांतिकारी गतिविधियों के स्थाननेतातौर तरीकों और मददगारों की जानकारी कुछ भी हाथ नहीं लगता था.

अनुशीलन समिति के एक प्रमुख सदस्य के नाते उन्हें जो काम दिया गया उसे उन्होंने पूरी ताकत के साथ सम्पन्न कर दिया. शस्त्रों की तैयारीउनका वितरणऐक्शन की योजना और कार्यान्वयनक्रांतिकारियों को गुप्त स्थान पर रखना और गुप्तचर विभाग की नजरों से भी बचा रहना आदि जोखिम भरे काम वह कक्षा के बाहर आकर करने लगे. इन्हीं दिनों गुप्तचर विभाग ने एक युवा को केशवराव की गतिविधियों का जायजा लेने के लिए नियुक्त किया. इसे केशवराव और उनके साथियों के साथ ही छात्रावास में रहने की व्यवस्था भी कर दी गई. केशवराव ने अपनी पैनी दृष्टि से इस गुप्तचर की हलचलों को पहचान लिया और एक दिन उसकी अनुपस्थिति में उसके बक्से में से सभी गुप्त कागज निकालकर उसकी पोलपट्टी खोली और अपने साथियों को सतर्क कर दिया. इस तरह केशवराव ने उस गुप्तचर की ही गुप्तचरी करनी शुरु कर दी.

सेवा के मोर्चे पर भी सक्रिय

अपने अध्ययन कार्य और अनुशीलन समिति के कामों के अतिरिक्त समाज सेवा के अन्य-अन्य कार्यों में भी वे सक्रियता से भाग लेते थे. सन् 1913 में दामोदर नदी में आई भयंकर बाढ़ ने बहुत तबाही मचाई थी. कई घर बाढ़ में नष्ट हो गए. लोगों के कारोबार चौपट हो गए. अनेक सामाजिक संस्थाएं लोगों को बाढ़ से निकालने तथा उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के काम करने लगीं. रामकृष्ण मिशन के युवा सन्यासियों एवं भक्तों ने सबसे आगे रहकर सहायता कार्य को सम्भाला. केशवराव हेडगेवार ने अपने साथियों के साथ सेवा कार्य में हाथ बटाना शुरु किया. इन युवाओं ने अपने प्राणों को संकट में डालकर ऐसी जगह पर जाकर लोगों को सुरक्षित निकाला, जहां कोई जाने की हिम्मत भी नहीं करता था. केशवराव की टोली के सदस्य पानी और कीचड़ में मीलों चलकर दूरदराज के गांवों तक पहुंचकर खाद्य सामग्री का वितरण करते थे. भूखेप्यासे और बिना सोये ये तरुण क्रांतिकारी दिनरात सेवा के कामों में जुटे रहे. इसी तरह कलकत्ता के निकटवर्ती एक शहर में हैजे की बीमारी फैलने पर केशवराव की टोली ने परिश्रमपूर्वक रोगियों की सेवा जैसा पवित्र कार्य भी किया

भावी जीवन का शिलान्यास

केशवराव हेडगेवार ने कलकत्ता में सक्रिय सबसे बड़े क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति के भीतर रहकर इस संगठन के काम करने के ढंग और उद्देश्य को बहुत नजदीक से समझ लिया. विभिन्न समितियों/उप समितियों के माध्यम से काम का बंटवारा और काम को गुप्त रूप से सफल करने की विधि इत्यादि अनुभव केशव राव हेडगेवार के भावी जीवन की नींव के पत्थर साबित हुए. अनुशीलन समिति में रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने से केशवराव का देश के कई प्रांतों के युवाओं से सम्बन्ध आ गया.

 केशवराव की दृष्टि देश की स्वतंत्रता के लिए किसी भावी सशस्त्र आंदोलन पर टिकी रहती थी. कलकत्ता में पांच वर्ष रहकर डॉक्टर हेडगेवार ने अनुशीलन समिति के माध्यम से देश की धड़कती नब्ज को पहचाना. राष्ट्र-समर्पित विप्लवी जीवन का सम्पूर्ण प्रशिक्षणभारत की सर्वांग स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व अर्पण करने का संकल्पसंगठित राष्ट्रवादी शक्ति की जरूरत का आभाससमाजसेवा के अमिट संस्कारअटल इच्छाशक्ति और डॉक्टरी की डिग्री लेकर 1915 में डॉक्टर केशवराव हेडगेवार नागपुर आ गए.

नागपुर वापस आने के बाद वे एक दिन भी चैन से नही सोए. देश को अंग्रेजों की गुलामी से छुड़ाने के लिए हो रहे तत्कालीन प्रयत्नों के सभी रास्ते उनके लिए खुले थे .डॉक्टर साहब किसी ऐसे सुदृढ़ रास्ते की तलाश में थे जो सीधे - सीधे ब्रिटिश साम्राज्यवाद की गर्दन तक पहुंचता हो .
.......................शेष कल.
 (वरिष्ठ पत्रकार तथा स्तंभ लेखक व लेखक)

Comments

Popular posts from this blog

कश्मीर : अतीत से आज तक – भाग एक

धर्म-रक्षक आध्यात्मिक कश्मीर नरेन्द्र सहगल पिछले अनेक वर्षों से मजहबी कट्टरपन , भारत विरोध और हिंसक जिहाद के संस्कारों में पल कर बड़ी हुई कश्मीर घाटी की युवा पीढ़ी को भारत की मुख्य राष्ट्रीय धारा में लाना वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती है । इसके लिए कश्मीर के उज्ज्वल अतीत का इतिहास पढ़ाया जाना अतिआवश्यक है । तभी युवा कश्मीरियों को सनातन (वास्तविक) कश्मीरियत का ज्ञान होगा और वे हिंसक जिहाद के अमानवीय मक्कड़जाल से बाहर निकलकर अपने गौरवशाली अतीत से जुड़ सकेंगे । नीलमत पुराण में स्पष्ट वर्णन मिलता है कि भारत का प्राय: सारा क्षेत्र एक भयानक जलप्रलय के परिणाम स्वरूप पानी से भर गया था । कालान्तर में भारत के सभी क्षेत्र पानी निकल जाने के कारण जीवन यापन के योग्य हो गए । परंतु भारत के उत्तर में हिमालय की गोद में एक विशाल क्षेत्र अभी भी जलमग्न ही था । इस अथाह जल ने एक बहुत बड़ी झील का आकार ले लिया । कश्यप मुनि ने बसाया कश्मीर तत्पश्चात् इस झील में ज्वालामुखी फटने जैसी क्रिया हुई । झील के किनारे वाली पर्वतीय चोटियों में अनेक दरारें पड़ने से सारा पानी बाहर निकल गया ।...

कश्मीर की स्वतंत्रता और सुरक्षा में संघ का योगदान

नरेंद्र सहगल भारत की सर्वांग स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं विकास के ध्येय के साथ आगे बढ़ रहे संघ के स्वयंसेवकों ने जम्मू-कश्मीर की रक्षा, भारत में विलय, अनुच्छेद 370 तथा 35/ए   का विरोध, भारतीय सेना की सहायता, कश्मीर से विस्थापित कर दिए गए लाखों हिंदुओं की सम्भाल, अमरनाथ भूमि आंदोलन,तिरंगे झण्डे के लिए बलिदान इत्यादि अनेकों मोर्चों पर स्वयंसेवकों ने मुख्य भूमिका निभाई है | वर्तमान में भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 तथा 35/ए को हटाने, जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन करने, लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश घोषित करने एवं जम्मू और कश्मीर का ‘पूर्ण राज्य’ का दर्जा वापस लेने जैसे साहसिक एवं ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं | इतनी प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति के निर्माण में संघ शाखाओं में दिए जाने वाले राष्ट्रभक्ति के संस्कारों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता | जम्मू-कश्मीर की स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं विकास के सभी मोर्चों पर स्वयंसेवकों ने बलिदान देकर अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया है | अतः वर्तमान में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन को समझने के लिए स्वयंसेवकों द्वारा 72 वर्ष तक किए गए संघर्ष की जानक...

समग्र क्रांति के अग्रदूत योगेश्वर श्रीकृष्ण

                                                                           24 अगस्त जन्माष्टमी पर विशेष नरेन्द्र सहगल अधर्मियों, आतंकवादियों, समाजघातकों, देशद्रोहियों और भ्रष्टाचारियों को समाप्त करने के उद्देश्य से धराधाम पर अवतरित हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्म से लेकर अंत तक अपने निर्धारित उद्देश्य के लिए सक्रिय रहे। वे एक आदर्श क्रांतिकारी थे। कृष्ण के जीवन की समस्त लीलाएं/क्रियाकलाप प्रत्येक मानव के लिए प्रेरणा देने वाले अदभुत प्रसंग हैं। इस संदर्भ में देखें तो श्रीकृष्ण का सारा जीवन ही कर्म क्षेत्र में उतरकर समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिए निरंतर संघर्षरत रहने का अतुलनीय उदाहरण है। आदर्शों/सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारने का दिशा निर्देश है। योगेश्वर कृष्ण की जीवनयात्रा कंस के कारावास की कठोर कोठरी से प्रारम्भ होती है। जेल में यातनाएं सह रहे वासुदेव और देवकी की कोख से जन्म लेकर और...