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चुनौतियों से घिरा कश्मीर का भविष्य



नरेंद्र सहगल


भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद (370) और राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा जारी एक पुराने अध्यादेश 35/ए का निपटारा करके पाकिस्तान समर्थित अलगाववाद/आतंकवाद पर एक प्रचण्ड प्रहार कर दिया है। भारत के संविधान, पंथनिरपेक्षता लोकतंत्र, और संघीय ढांचे को चुनौती देने वाली राजनीतिक व्यवस्था अब  समाप्त हो गई है। भारत से अलग कश्मीर को भिन्न पहचान देने वाला रियासती झंडा और रियासती संविधान अब अपनी स्वयं की पहचान खो चुके हैं।

अभी जिंदा है अलगाववाद

प्रबल राजनीतिक इच्छा और साहसिक फैसले के साथ हुए इस ठोस ऐतिहासिक परिवर्तन के बावजूद भी अनेक विध  चुनौतियां मुहं बाएं खड़ी हैं। एक हास्यास्पद परंतु गम्भीर चुटकुले से इस तथ्य को समझा जा सकता है। एक विद्यालय को आग लग गई। सारा भवन जलकर समाप्त हो गया । सभी बच्चे खुशी से नाचने लग गए। वाह-वाह छुट्टियां हो गई। परंतु एक बच्चा कोने पर खड़ा हो कर जोर-जोर से रोने लग गया। प्रसन्नता से नाच रहे बच्चों ने उससे पूछा- “तू क्यों रो रहा है? उसने रोते हुए कहा- अरे मूर्खो स्कूल ही तो जला है, मास्टर तो अभी भी जिंदा है।

बस यही सार इस लेख का। अलगाववाद, आतंकवाद, भारत विरोध को संरक्षण दे रहा संवैधानिक भवन (अनुच्छेद 370) अवश्य जल गया है, परंतु पाकिस्तान समर्थक और समर्थित तत्व तो अभी जिंदा हैं। गत सत्रह वर्षों से पनप रही मजहबी दहशतगर्दी एक प्रहार से राष्ट्रवाद में नहीं बदल सकती। बंदूक उठाने वाले हाथों में कलम और कंप्यूटर थमाना इतना आसान नहीं है। देशद्रोहियों को देशभक्त बनाने में समय लगेगा। कश्मीर को पाकिस्तान बनाने के इरादे से खूनखराबा कर रहे उन्मादी तत्वों की मानसिकता बदलने का काम असंभव नहीं तो कठिन जरूर है।

‘आज़ाद कश्मीर’ ‘स्वायत्तशासी कश्मीर’ और निजामे-मुस्तफा’ के वैचारिक आधार पर बगावत पर उतरे राजनीतिक नेताओं से निपटने में एक सोची समझी राजनीति की जरूरत है। परंतु आशा ही नहीं अपितु विश्वास भी किया जा सकता है कि जो सरकार अनुच्छेद 370 जैसे भारी-भरकम अवरोध को रास्ते से हटा सकती है सरकार कश्मीर से खूनी अलगाववाद को समाप्त करके प्रखर राष्ट्रवाद को जागृत भी करेगी।

राष्ट्रीय धारा में लौटेगा कश्मीर

जब हम कश्मीर के संदर्भ में भविष्य की चुनौतियों पर विचार करते हैं, तो इसे जान लेना भी जरूरी है कि यह एक नहीं अनेक है। कश्मीर के युवकों को भारत राष्ट्र की मुख्यधारा में लाना सबसे बड़ी चुनौती है। यह वर्तमान पीढ़ी मदरसों, स्कूलों और मजहबी स्थानों से संस्कारित होकर आई है, जिन पर कट्टरपंथी मुल्लों-मौलवियों का शिकंजा है। अब कश्मीर में एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली की समयोचित जरूरत रहेगी जो पाकिस्तान परस्त मजहबी मुल्लाओं और ‘निजामे मुस्तफा की हकूमत’ चाहने वाले नेताओं के निगरानी से दूर हो। वास्तव में इन्हीं लोगों ने इस्लाम की नकारात्मक परिभाषा करके कश्मीर के युवाओं को अपने ही सनातन कश्मीरियत (सह-अस्तित्व) से नफरत करना सिखाया है। इन्हीं लोगों ने स्वर्ग को नरक में तब्दील करके रख दिया है।

शिक्षा संस्थाओं में परिवर्तन के साथ राष्ट्रवादी साहित्य के प्रचार/प्रसार के लिए जरूरी आवश्यक पग  उठाने की योजना को साकार रूप देना होगा। कश्मीरी युवकों को अलगाववादियों की जकड़न से निकालने के लिए उन्हें यह समझाना पड़ेगा कि जिस कश्मीरियत के लिए जेहाद कर रहे हैं, उसका कश्मीर की धरती और सनातन (वास्तविक) कश्मीरियत से कुछ भी लेना देना नहीं है। यह तो कश्मीर पर हमला करने वाले विदेशी आक्रान्ताओं की दहशतगर्द  तहजीब है।

इस मात्र छ: सौ वर्ष पुरानी हमलावर तहजीब ने छ: हजार  वर्ष पुरानी उस कश्मीरियत को तलवार के जोर पर समाप्त कर दिया है जिसमें ‘सर्वधर्म समभाव’, ‘सहअस्तित्व’, ‘समन्वय’ और ‘सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास’ जैसे मानवीय गुण थे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने इसी को इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत कहा था।

हिंदुओं के सुरक्षित घर वापसी

दुर्भाग्य से विदेशी हमलावरों के आगे नतमस्तक होकर अपने ही पूर्वजों की उज्ज्वल संस्कृति को बर्बाद करने वाले कश्मीरी आज कश्मीर के मालिक बन बैठे हैं। और जिन लोगों ने विदेशियों के तलुए नहीं चाटे, अपने धर्म और धरती पर अडिंग रहे, अपने पूर्वजों के साथ गद्दारी करके हमलावरों की तहजीब (जेहादी कश्मीरियत) को नहीं अपनाया वे लोग विस्थापित होकर देश के कोने-कोने में बेसहारों की तरह अपने दिन काट रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि विदेशी आक्रान्ताओं की तहजीब को कश्मीरियत कहने वाले लोग विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं का यह कहकर मजाक उड़ाते हैं-‘पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है’।

अतः अपने घरों से बेघर कर दिए गए इन विस्थापित कश्मीरियों की सुरक्षित एवं सम्मानजनक घर वापसी भाजपा सरकार तथा समस्त देश के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है। इस समस्या का समाधान करने के लिए कश्मीर के बहुसंख्यक मुस्लिम भाइयों को आगे आना चाहिए। जब तक मुसलमान बन्धु कट्टरपंथियों के खिलाफ एकजुट होकर अपने पंडित भाइयों (चचेरे भाइयों) के सम्मान और सुरक्षा की गारंटी नहीं लेते, तब तक पंडित भाइयों का वहां जाना संभव नहीं हो सकता। फौज के सहारे कब तक रहेंगे यह बेसहारे लोग। अपने पूर्वजों की धरती पर सम्मान पूर्वक रहना यही तो चुनौती है।

पाकिस्तानी घुसपैठ का अंत

कश्मीर को पुनः पटरी पर लाने के लिए पाकिस्तान की ओर से होने वाली सशस्त्र घुसपैठ को पूर्णतया समाप्त करने के लिए बालाकोट जैसी कई सैन्य कर्रवाइयां करने में भारतीय सेना पूर्णतया सक्षम है। अब तो अधिकांश बड़े देश भारत के साथ खड़े हो गए हैं। विश्वास है कि भारत की सरकार पहले से ज्यादा प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ सीमा पर से आने वाले आतंकियों का ना केवल सफाया ही करेगी अपितु उनको भेजने वालों का भी निपटारा करके दम लेगी। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तथा सेना प्रमुख जनरल रावत के बयानों से तो यही आभास होता है कि इस चुनौती का भी बेअसर करके भारत की सरकार इस समस्या को भी दफन करने में कामयाब रहेगी।

आतंकवाद को जन्म देकर इसका पालन पोषण करने वाले राजनीतिक नेताओं कट्टरपंथी मजहबी सरगनाओं पर सरकार ने नकेल कसी है। इसे और ज्यादा कसने की जरूरत है। सरकार ने ऐसे सरगनाओं को जेलों में बंद किया है। इन्हें छोड़ने की जल्दबाजी सरकार को नहीं करनी चाहिए। आतंकवाद के इन जन्मदाताओं पर देशद्रोह के मुकदमे चलाने में रत्ती भर भी संकोच नहीं करना चाहिए। अगर इन मजहबी अजगरों के सर  नहीं कुचले गए तो यह पुन: फुंकार भरने लगेंगे।


मोदी है तो मुमकिन है

इसी तरह जिन घरों में आतंकवादियों को पनाह मिलती है, उन परिवारों को भी आतंकवादी घोषित करके सख्त कारवाई  करना समयोचित कदम होगा। प्रदेश के प्रशासन में घुसे हुए पाकिस्तान समर्थकों को भी खोज-खोज कर जेल में सींखचों में बंद करना होगा। अन्यथा ऐसे तत्व सरकार के फैसलों को क्रियान्वित नहीं होने देंगे। कश्मीर में बेहिसाब धार्मिक स्थलों (मस्जिदों) को आतंकवादी जेहादी वारदातों के लिए इस्तेमाल करते हैं। इस परंपरा पर रोक लगाने से अलगाववाद दम तोड़ देगा।

 ध्यान देने की बात है कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों की संख्या बहुत कम है। आम नागरिक शेष भारतीयों की तरह अमन चैन से जीना चाहता है। ऐसे अमन पसंद देशभक्त नागरिकों में से राष्ट्रवादी नेतृत्व उभर कर सामने आ सकता है। अलगाववादी सरगनाओं को ठिकाने लगाकर देशभक्त कश्मीरियों को एकजुट करना आसान हो जाएगा। सरकार द्वारा ग्राम स्तर तक पंचों सरपंचों द्वारा विकास की योजना बनाई जा रही है। विकास की गति जैसे-जैसे तेज होगी, वैसे-वैसे अलगाववाद गिरता चला जाएगा । इससे सरकार आम कश्मीरी का दिल जीतने में सफल होगी।
                      
अनुच्छेद 370 की आड़ में जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को अनेक मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। इस प्रकार की तथ्यात्मक जानकारी देने के लिए बकायदा सरकारी स्तर पर प्रयास करके माहौल को शांत किया जा रहा है। भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर में पूरी तरह लागू करने का प्रयास युद्ध स्तर पर शुरू हो चुका है। बहुत शीघ्र इस सीमावर्ती प्रदेश का प्रत्येक नागरिक यह महसूस करेगा कि सारा भारत उसका है। मोदी है तो मुमकिन है।

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